Saturday, August 27, 2011

मुम्बई की सैर :--मेरी नजर में ( 5 )


" ये है बाम्बे मेरी जान " 
"इस्कॉन" 





 कृष्ण जन्मअष्टमी पर आपको मैं ले चलती हूँ .....बाम्बे के हरे रामा हरे कृष्णा मंदिर ..जिसे इस्कॉन भी   कहते हैं ---





( यह हैं इस्कॉन  मंदिर जुहू .मुम्बई )



( यह हैं इस्कॉन  का प्रवेश द्वार )






(हरे रामा हरे कृष्णा  भजन गाते भक्त )






इस्कॉन या अंतर्राष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ को "हरे कृष्ण आंदोलन" के नाम से भी जाना जाता है। इसे १९६६ में न्यूयॉर्क नगर में भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद ने प्रारंभ किया था। देश-विदेश में इसके अनेक मंदिर और विद्यालय है।पने साधारण नियम और सभी जाति-धर्म के प्रति समभाव के चलते इस मंदिर के अनुयायियों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। हर वह व्यक्ति जो कृष्ण में लीन होना चाहता है, उनका यह मंदिर स्वागत करता है। स्वामी प्रभुपादजी के प्रयासों के कारण दस वर्ष में ही समूचे विश्व में १०८ मंदिरों का निर्माण हो चुका है । इस समय इस्कॉन समूह के लगभग ४०० से अधिक मंदिरों की स्थापना हो चुकी है।

भारत से बाहर विदेशो मे हजारो विदेशी महिलाए साडी  पहनकर और पुरुष धोती -कुरता  पहनकर दिखाई दे जाएगे -- मांसाहार छोड़ ये प्रभु कृष्ण के कीर्तन करते हुए नजर आएगे ! इस्कान ने पश्चिमी  देशो में अनेक भव्य मंदिर और  विद्यालय बनाए  

जूहू (मुंबई) में स्थित है इस्कॉन का प्रसिद्ध मंदिर !यह मंदिर भगवान कृष्ण को समर्पित है. --यह 1978 में एक आध्यात्मिक केन्द्र के रूप में खोला गया था. तब से इस मंदिर का प्रबंधन इस्कॉन द्वारा किया जाता हैं --



(भक्ति वेदान्त  स्वामी प्रभुपादजी ) 





(अन्दर का बड़ा हाल --अन्दर फोटू खीचना मना हैं )
चित्र:-गूगल जी से 


( अन्दर का द्रश्य )  


( अपनी सहेली रुकमा की छोटी बहन शीला के साथ ) 




( रुकमा और मैं --मंदिर के प्रगांड में )






इस मंदिर की आध्यात्मिकता जो सर्वोपरि है -- परिसर में एक संगमरमर का  मंदिर है जो विशाल है, जिसमें कृष्ण सुभद्रा बलराम की मुर्तिया है --राधा -कृष्ण की भी  मूर्ति हैं --एक पुस्तक प्रकाशन घर है, एक रेस्टोरेंट और एक गेस्ट हाउस है---जहां भक्तों  के रहने और आध्यात्मिक कार्यक्रमों में भाग लेने की व्यवस्ता है--हर दिन यहाँ काफी लोग आते है.---जन्माष्टमी  पर यहाँ  विशेष प्रोग्राम होते हैं ?





( अन्दर के द्रश्य ....कृष्ण का गीता सन्देश --अर्जुन को  बताते हुए)
चुपचाप फोटो खिंच रहे थे तो एक सेवक ने आकर मना किया 








( स्वामीजी का प्रवचन ) 





( गोवर्धन पर्वत उठाते हुए श्री कृष्ण)   




(भक्ति में लींन )




( राधा और कृष्ण का एक खुबसुरत चित्र )


मंदिर में हमेशा भक्तो का जमावड़ा लगा रहता हें--दोपहर को यह दो बजे बंद होता हैं और ३.३० बजे खुलता हैं --आरती के बाद बहार प्रशाद का वितरण होता हैं ---जो काफी मात्रा में होता हैं  ---यहाँ के  रेस्टोरेंट में कई तरह की मिठाइयाँ वाजिब दामो में मिलती हें ---यहाँ मिलने वाला वडापाव,समोसा ,ढोकला और चाय की क्वालिटी बहुत उतम होती हें  --यहाँ आपको तुलसी माला पहने हुए हाथो में जप् माला लिए हुए अनेक लोग देशी -विदेशी मिल जाएगे ---




( छुईमुई राधा --चंचल कृष्ण--) 




अब आपको ले चलती हूँ -- उज्जैन के  इस्कॉन मंदिर में ----जहाँ कुछ दिन पहले मैं गई थी  ----




( यह हैं उज्जैन का इस्कॉन  मन्दिर )




( राधा -कृष्ण )




( उज्जैन के मंदिर के अंदर स्वामीजी की मूर्ति )




इस्कॉन  मंदिर के बहार खड़ी मैं )




( मेरे साथ  मेरे भाई की फैमिली )








( हाल   में  बैठे  हुए )  




अभी यह मंदिर नया हैं ---ज्यादा भीड़ भी नहीं हैं --इस तरह मेरी यात्रा समाप्त हुई !


जल्दी ही मिलेंगे ...मुम्बई के एक नए सफर पर ...

Friday, August 5, 2011

** जनम- दिन **



आज मेरी छोटी बेटी निक्की का जनम-दिन हैं ..



 अपने पापा की गोद में निक्की 

पंजाबी में निक्की का मतलब होता हें--'छोटा '--हर पंजाबी घरो में एक निककी  या एक निक्कू मिल जाएँगे--
आज निक्की का 21वा  जनम दिन हैं ---हमारे पुरे खानदान में वो बहुत लाडली हैं ..पर मुझे याद आ रहा हैं वो दिन जब निक्की इस धरा पर जन्मी भी नही थी ....???
मैं तीसरे बच्चे के एकदम खिलाफ थी --मेरा पूरा परिवार बन चूका था --इसे मैं किसी भी हालत  में नहीं चाहती थी   ..मैने बहुत कोशिश की पर सफल नही हुई --वो कहते है न --'जाको राखे साईयाँ ,मार सके न कोई '--ठीक यही  हाल निक्की के साथ भी हुआ ---???
उसके जनम की मुझे कोई ख़ुशी नहीं हुई --यहाँ तक की मैने उसकी शक्ल भी नही देखी !अपना मुंह फेर लिया .. डॉ ने बहुत  कहाँ की आप एक नन्ही बेटी की माँ बनी हैं ...पर मुझे अच्छा ही नही लग रहा था ...     
लेकिन ,२दिन बाद एक अजब वाकिया हुआ ..जिसने मेरा मन ही बदल दिया ----   
२दिन बाद मैं निक्की को लेकर घर आ गई --दिल में कोई ख़ुशी नही थी --मन थोडा उदास था --पर पतिदेव बहुत खुश थे--उनको वैसे भी लडकियों से जरा ज्यादा ही लगाव हैं ..... 

रात को करीब १० बजे निक्की की साँसे उखड़ने लगी --नब्ज बहुत स्लो चल रही थी--हम घबरा गए --तुरंत उसे नर्सिग होम  डॉ के पास लेकर गए --डॉ ने चेक किया और कहा --'आपने इसे कुछ खिला दिया हैं --आप इसे नही चाहती थी न ' ??? मैं  हेरान रह गई --बात तो ठीक थी पर, मैने उसे कुछ नही खिलाया था सिर्फ शहद चटाया था ?मैने उससे  कहा --पर वो मानने  वाली नही थी --  बोली -- 'पुलिस कम्प्लेंट  तो करवानी पड़ेगी हम कुछ नही कर सकते ...'  
 मैने बहुत कहा-पहचान वाली डॉ थी, थोडा पसीजी ! बोली-- 'आप इसे बाम्बे ले जाए बच्चो के सरकारी  हास्पिटल  में ,यहाँ हम कुछ नही कर सकते--मैं चिठ्ठी लिख देती हूँ  ...!' हालाकि मैं  बहुत डर गई थी  और इसी कारण मैने उसे यह नहीं बताया की मैने उसे थोड़ी सी अफीम भी चटाई हैं --हमारे यहाँ रिवाज है की बच्चे को थोड़ी सी अफीम भी चटाते हैं ताकि वो आराम से सो सके और पेट की गंदगी भी निकल सके ...शायद मैने नासमझी में थोडा -सा डोज ज्यादा दे दिया होगा ....
खेर, रात ३ बजे हम वसई से टेक्सी कर ग्रांड रोड स्थित वाडिया हास्पिटल चल पड़े --हमे २ घंटे लग जाना था ....रास्ते भर  उस नन्ही सी जान पर बहुत तरस आता रहा..मेरा हाथ उसकी नब्ज पर ही था और मैं अपने आप को कोस  रही थी की मेरी वजय से इस नन्ही -सी जान पर यह कयामत टूटी हैं ..मैं मन ही मन   भगवान् से अपने किए की माफ़ी मांग रही थी ..मेरी मनहूस इच्छा ये मासूम बच्चा भुगत रहा था --डॉ को तो समझ आ गया था की कुछ खिलाया जरुर हैं ? पर मैं उसे बतला नही सकती थी..? मैं खुद डर गई थी ..उपर से २दिन की जच्चा !  बहुत कमजोरी महसूस कर रही थी ..लेंकिन अपनी कमजोरी को नजरंदाज कर मैं निक्की के प्राणों की भीख मांग रही थी ...माँ की ममता की आखिर जीत हुई ..


हम वाडिया हास्पिटल पहुंचे तब तक सुबह हो चुकी थी ..वो काली अमावस्या की रात बीत चुकी थी ---निक्की भी अब नार्मल साँसे ले रही थी ---शायद अफीम का असर खत्म हो चूका था --हमने OPD में दिखाया तो डॉ बोला यह नार्मल हैं --?आप घर जा सकते हैं ...
 मेरा ख़ुशी का ठिकाना नहीं था ..आँखों में ख़ुशी के आंसू थे --हम वापस घर चल पड़े ...
भगवान् ने मुझे एक करार झटका दिया था ?

आज मेरी  उसी बेटी का जनम दिन हैं ...निक्की बहुत समझदार और हुशियार लडकी हैं ...हमारे घर की रोंनक और सबकी चाहती ...
   
आज उसको एक कविता रूपी भेट देना चाहती हूँ :--






" एक अजन्मी बेटी की इल्तजा "

ओ माँ मेरी !मुझे कोख मैं न मार 
मुझे देखने दे यह प्यारा संसार 
तेरी गोद में मुझ को रहने दे 
कुछ पल मुझे और जीने दे 
ओ माँ मेरी ..
मुझे तुझ से कुछ और नही लेना हैं 
बेटी होने का अधिकार मुझको देना हैं 
क्यों तू मेरा गला घोट रही हैं
ओ माँ मेरी . ..
तू भी तो एक माँ की जननी हैं 
देखने यह संसार आई हैं 
फिर क्यों मेरा वजूद मिटाने चली है
ओ माँ मेरी ...
मुझे मारकर तुझे क्या मिलेगा !
बेटियां तो होती हैं घर का गहना ! 
 ओ माँ मेरी ...
मारकर मुझ को तू क्या करेगी 
यह दंड तू सारे जनम भरेगी 
इस निठुर समाज के लिए 
तू मुझे यू न उजाड़ 
ओ माँ मेरी ...
अपनी कोख को तू कब्रस्तान न बना 
मुझे इस कब्र में जिन्दा न दफना 
सुन ले मेरी चीख -पुकार 
ओ माँ मेरी ...
यह कैसा समाज है माँ !
यह कैसा रिवाज है माँ !
पुत्र जन्मे तो चाँद चढ़ जाए 
पुत्री जन्मे तो अधियारा घिर आए 
यह कैसा इन्साफ हैं माँ ?
यह कैसा समाज है माँ ?
तू इन कसाइयो में क्यों मिल गई 
ओ माँ मेरी ..
कर ले मेरी मौत से तोबा !
मैरी जिंदगी से गर्व तुझे होगा !!
ओ माँ मेरी ...


पुत्रियों को न मारो करो इस बात से तोबा !
क्योकि यह होती हैं हमारे घर की शोभा !!