फिर मिलूंगी कब ????
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मैं तुमसे फिर कब मिलूंगी ?
कब ???
जब चन्द्रमा अपनी रश्मियाँ बिखेर रहा होगा ।
जब जुगनु टिमटिमा रहे होंगे ।
जब रात का धुंधलका छाया होगा ;
जब दूर सन्नाटे में किसी के रोने की आवाज़ होगी ;
या कहीं पास पायल की झंकार होगी ?
या चूड़ियों की कसमसाहट ?
क्या तब मैँ तुमसे मिलूंगी ?
या तीसरे पहर की वो अलसाई हुई सुबह ---
या उस सुबह में पड़ती ओंस की नन्ही नन्ही बूंदों के तले ---
या दूर पनघट से आती कुंवारियों की हल्की सी चुहल के साथ--
या रात की रानी की बेख़ौफ़ खुशबु
या नींद से बोझिल मेरी पलकें और
उस पर सिमटता मेरा आँचल...
बोलो ! फिर कब मिलूंगी तुमसे ..
सावन की मस्त फुहारों के साथ
झूलों की ऊँची उठानो के साथ
पानी से भीगते दो अरमानो के साथ
या हवा में तैरते कुछ सवालों के साथ
क्या तब मैं तुमसे मिल पाउंगी ?
थरथराते होठों के साथ
सैज पर बिखरी कलियों के साथ
मिलन के मधुर गीतों के साथ
ठोलक पर थिरकती उँगलियों के साथ
या बजती शहनाई की लहरियों के साथ
क्या सच में ! मैं तुमसे मिल पाउंगी !
इन्हीं उधेड़े हुए कुछ पलो के साथ
कुछ गुजरी ;
कुछ गुजारी यादों के साथ
कुछ अनसुलझे जवाबों के साथ
कुछ यू ही अलमस्त ख्यालों के साथ
क्या हम फिर मिल पायेगे.....?
क्या हम फिर मिल पायेगे.....?
---दर्शन के दिल से 💓
7 comments:
Wah,baht khoob.
Meri hee ek kawita, aaj Mai tumase miloongi pyar ki unchaiyon par
Yad aa gai.
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 24 जून 2017 को लिंक की जाएगी ....
http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!
बहुत सुंदर👌👌
क्या हम फिर मिल पायेंगे.....
बहुत खूब....
सुन्दर।
मार्मिक प्रस्तुति.
इन्हीं उधेड़े हुए कुछ पलो के साथ
कुछ गुजरी ;
कुछ गुजारी यादों के साथ
कुछ अनसुलझे जवाबों के साथ
कुछ यू ही अलमस्त ख्यालों के साथ,,,,,,,बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना,
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