tag:blogger.com,1999:blog-14006200658612047412024-02-22T06:41:01.811+05:30लफ़्जों की जिन्दगीउजाले अपनी यादों के मेरे पास रहने दो,न जाने किस गली में जिन्दगी की शाम हो जाए।दर्शन कौर धनोयhttp://www.blogger.com/profile/06042751859429906396noreply@blogger.comBlogger28125tag:blogger.com,1999:blog-1400620065861204741.post-45798409347899782022016-06-06T11:22:00.001+05:302016-06-06T11:22:38.379+05:30"मैँ तुमसे फिर कब मिलूंगी "फिर मिलूंगी कब ????
~~~~~~~~~~~~
मैं तुमसे फिर कब मिलूंगी ?
कब ???
जब चन्द्रमा अपनी रश्मदर्शन कौर धनोयhttp://www.blogger.com/profile/06042751859429906396noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-1400620065861204741.post-891699601810788422015-08-04T01:24:00.001+05:302015-08-04T01:24:49.748+05:30जीवन की विभीषिका 💖 जीवन की विभीषिका 💕
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अपने चेहरेे पर झूठ का मख़ौटा चढ़ाती हूँ
दिल के &#दर्शन कौर धनोयhttp://www.blogger.com/profile/06042751859429906396noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-1400620065861204741.post-16993329237821518392015-08-04T01:06:00.001+05:302015-08-04T01:06:20.394+05:30जीवन की विभीषिका💕 जीवन की विभीषिका 💖
अपने चेहरेे पर झूठ का मख़ौटा चढ़ाती हूँ
दिल के अरम&दर्शन कौर धनोयhttp://www.blogger.com/profile/06042751859429906396noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1400620065861204741.post-37626498329569787692015-08-04T01:02:00.001+05:302015-08-04T01:02:21.718+05:30दर्शन कौर धनोयhttp://www.blogger.com/profile/06042751859429906396noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1400620065861204741.post-21742685978057934522012-09-05T23:02:00.000+05:302012-09-05T23:02:14.890+05:30समुंदर का मोती
वो समुंदर का मोती था ...सिप उसका घर था ..बाहरी दुनियाँ से वो अनजान था .....अपने दोस्तों से उसको बहुत प्यार था ...कुर्बान था वो अपनी दोस्ती पर ,मस्त मौला बना वो गुनगुनाता रहता था ...दोस्तों के छिपे खंजर से वो अनजान था ..
एक दिन उसने दोस्तों का असली रूप देखा ..दिल टूट गया उसका ..एक भूचाल -सा आ गया उसके जीवन में ..वो अंदर तक तिडक गया ...फिर भी वो शांत रहा ...दर्शन कौर धनोयhttp://www.blogger.com/profile/06042751859429906396noreply@blogger.com12tag:blogger.com,1999:blog-1400620065861204741.post-13763347136691172502012-08-10T10:33:00.001+05:302012-08-10T10:33:20.415+05:30जनमअष्टमी
बात 1988 की हैं ......शायद 24 अगस्त का दिन था... हम पंजाब से एक शादी के बाद कोटा आ रहे थे ....जनम अष्टमी का दिन था ....हम सेकण्ड क्लास के कूपे में थे ..पहले सेकंड क्लास में लेडिस कूपा होता था ...साथ ही मेरी ननदे और देवरानी- देवर और मिस्टर भी थे बच्चे भी थे ...
हम बातो में मशगुल थे जब मथुरा आया ..सारा शहर बिजली से जगमगा रहा था ..दर्शन कौर धनोयhttp://www.blogger.com/profile/06042751859429906396noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1400620065861204741.post-3768536635844540652012-08-01T22:43:00.000+05:302012-08-01T22:43:42.951+05:30मैं और मेरी तन्हाईयाँ -----!
"अपने फ़साने को मेरी आँखों में बसने दो !न जाने किस पल ये शमा गुल हो जाए !"
बर्फ की मानिंद चुप -सी थी मैं ----क्या कहूँ ?कोई कोलाहल नहीं ?एक सर्द -सी सिहरन भोगकर,समझती थी की "जिन्दा हूँ मैं " ?कैसे ????उसका अहम मुझे बार -बार ठोकर मारता रहा --और मैं ! एक छोटे पिल्लै की तरह --बार -बार उसके कदमो से लिपटती रही --नाहक अहंकार हैं उसे ?क्यों इतना गरूर हैं उसे ?दर्शन कौर धनोयhttp://www.blogger.com/profile/06042751859429906396noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-1400620065861204741.post-88122406306739735522012-07-22T00:37:00.000+05:302016-06-06T11:30:25.955+05:30तीसरा पहर ....
जिन्दगी के इस तीसरे पहर में ---
जब मुझे तुमसे प्यार होता है ?
तो महसूस होता है मानो जलजला आ गया हो ?
और मुसलाधार बारिश उसे शांत कर रही हो ?
मेरा स म्पूर्ण व्यक्तित्व मानो निखर गया हो ?
मेरे जीवन का सपना जैसे साकार हो गया हो ....?
जब मेरी गुदाज़ बांहों में तुम्हारा जिस्म आता हैं
तो यु लगता है मानो मृग को दर्शन कौर धनोयhttp://www.blogger.com/profile/06042751859429906396noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-1400620065861204741.post-30823247428763812242012-07-10T11:46:00.000+05:302012-07-10T11:46:27.650+05:30एक 'कील' हूँ मैं ** ?
एक 'कील' हूँ मैं
असम्भव की गहरी खाई में गिरी हुई ****एक 'कील' हूँ मैं *** ?साधारण ***
जंग लगी ***खुद से ही टूटी हुई **थकी ??? कमजोर !!!
तुम्हारा तनिक -सा सपर्श ,,,मुझे जिन्दगी दे सकता हैं प्रिये !
मुझे उठाकर अपने कॉलर पर सजा लो ****मैं फूल बनकर खिल जाउंगी !मुझे उठाकर अपने पहलु में सुला लो **** मैं प्रेमिका बनकर लिपट जाउंगी !मुझे उठाकर अपने सीने दर्शन कौर धनोयhttp://www.blogger.com/profile/06042751859429906396noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-1400620065861204741.post-57392315938260235372012-06-24T23:14:00.001+05:302012-06-24T23:16:02.351+05:30नादानी....
दो घडी के साथ को हम प्यार समझ बैठे ..नादानी यह हमसे हुई हम क्या समझ बैठे ...!उसने चूमा ही था कुछ ऐसे इन पलकों को ..नादानी यह हमसे हुई हम प्यार समझ बैठे ...!पकड़ा था उसने हाथ जब भीड़ भरी सडक पर ...
नादानी यह हमसे हुई हम प्यार समझ बैठे ...!
धडकती थी धड़कने उनके नाम से मेरी ..
नादानी यह हमसे हुई हम प्यार समझ बैठे ..!
चाह था उनका साथ रहे जिन्दगी में हर -पल
नादानी यह हमसे हुई हम ख्वाब को सचदर्शन कौर धनोयhttp://www.blogger.com/profile/06042751859429906396noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-1400620065861204741.post-42734263516908831242012-06-01T14:20:00.002+05:302012-06-01T14:23:09.425+05:30एक प्यार भरा गीत !
तेरे मेरे बीच एक दिवार है मेरी जान !
तोड़ना चाहां पर वक्ता था सरकता गया !!
************************************************************
!! आज एक प्यार भरा गीत !!
वह बोला -- "मुझसे प्यार करती हो "मैने कहा --"हाँ "वह बोला -- "मुझे छोड़ तो न जाओंगी "मैने कहा --" न "वह बोला-- "यह सब मेरेलिए है "
मैने उसकी सपनील आँखों में डूबकर कहा -- "हां "
" यह साँसों की दर्शन कौर धनोयhttp://www.blogger.com/profile/06042751859429906396noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-1400620065861204741.post-33099208869974144902012-06-01T14:18:00.000+05:302012-06-01T14:18:32.472+05:30एक प्यार भरा गीत !
तेरे मेरे बीच एक दिवार है मेरी जान !
तोड़ना चाहां पर वक्ता था सरकता गया !!
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!! आज एक प्यार भरा गीत !!
वह बोला -- "मुझसे प्यार करती हो "मैने कहा --"हाँ "वह बोला -- "मुझे छोड़ तो न जाओंगी "मैने कहा --" न "वह बोला-- "यह सब मेरेलिए है "
मैने उसकी सपनील आँखों में डूबकर कहा -- "हां "
" यह साँसों दर्शन कौर धनोयhttp://www.blogger.com/profile/06042751859429906396noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1400620065861204741.post-68332497394283366182012-04-26T11:00:00.000+05:302012-04-26T11:00:28.404+05:30सागर और चंद आंसू !!
' कोई सागर इस दिल को बहलाता नही '
कोई सागर इस दिल को बहलाता नहीं जिन्दगी की कश्ती लगी है दांव पर क्यों कोई मांझी आकर पार लगाता नहीं ? कोई सागर इस दिल को बहलाता नहीं --
गलती हमारी थी क्यों की कश्ती तूफां के हवाले !पतवारे फैंक कर क्यों हो गए इन हवाओं के सहारे !क्यों कोई आकर आज इस तूफां से हमें बचाता नहीं ?कोई सागर इस दिल को दर्शन कौर धनोयhttp://www.blogger.com/profile/06042751859429906396noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-1400620065861204741.post-76345136184209437252012-03-14T11:39:00.000+05:302012-03-14T11:39:00.440+05:30* मेरी माँ *
* मेरी माँ *
मोम की तरह पिगलती रहती है शमां बन जलती रहती है हमरा हर काम अपनी शक्ति से परे करती है हमे परेशां देख ,खुद मन ही मन कुढती है हाँ ,यह मेरी माँ है !हाँ, यह मेरी माँ है !रब से भी ज्यादा मुझको इससे प्यार है |
कभी खुद को साबित नही किया उसने हमेशा हमे प्रोत्साहित किया उसने हमारी हर गलती को माफ़ किया उसने हममे हर शक्ति का संचार किया उसने दर्शन कौर धनोयhttp://www.blogger.com/profile/06042751859429906396noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-1400620065861204741.post-76316543098547431412012-02-18T10:58:00.000+05:302012-02-18T10:58:32.798+05:30और मैं लौट गई ---..
मुझे अब उसकी जिन्दगी से लौट जाना चाहिए ----क्योकिं अब हमारा समागम संभव नहीं----?वो मुझे कदापि स्वीकार नहीं करेगा----मैनें हर तरफ से अपनी 'हार' स्वीकार कर ली हैं----!तो क्यों मैं मेनका बनकर,विश्वामित्र की तपस्या भंग करूँ -----???
वो मुझे 'काम ' की देवी समझता हैं----जिसे एक दिन काम में ही भस्म हो जाना हैं ---पर मैं रति -ओ - काम की देवी नहींदर्शन कौर धनोयhttp://www.blogger.com/profile/06042751859429906396noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-1400620065861204741.post-8586021411047007362012-01-22T08:33:00.000+05:302012-01-22T08:33:52.898+05:30मुझे मेरा प्यार लौटा दो *****
यह कविता 'साहित्य प्रेमी संध' के काव्य संग्रह में छपी हुई हैं
"टूटते सितारों की उड़ान "
मेरी कुछ यादे तुम्हारे पास पड़ी हैं *****मेरा प्यार !वो चाहत ! तुम्हारे पास पड़ी हैं *****मुझे वो यादें लौटा दो *****मुझे मेरा प्यार लौटा दो *****
किताबो में रखा वो मुरझाया फूल ****खुश्बुओ से सराबोर वो मेरे ख़त ****मेरी वो पायल ****मेरा वो रुमाल ****
मेरा वो दुप्पटा ****मुझे मेरा वो सामान लौटा दर्शन कौर धनोयhttp://www.blogger.com/profile/06042751859429906396noreply@blogger.com11tag:blogger.com,1999:blog-1400620065861204741.post-27910520591196358692012-01-12T08:46:00.003+05:302012-01-12T10:52:03.485+05:30दिलकश चाँद !
दिलकश चाँद !
यह कविता 'साहित्य प्रेमी संध' के काव्य संग्रह में छपी हुई हैं
" चलो दिलदार चलो चाँद के पार चलो "
तुम्हारी चमकती आँखों में छांककर पूछती--और तुम अपनी मदमस्त आँखों को घुमाकर कहते --
" हम हैं तैयार चलो "--
और मैं ख़ुशी के हिंडोले में सवार दू.....र... आकाश में अपने पंख पसार बादलो से परे,चाँद की पथरीली जमीं पर,उड़ते -उड़तेदर्शन कौर धनोयhttp://www.blogger.com/profile/06042751859429906396noreply@blogger.com10tag:blogger.com,1999:blog-1400620065861204741.post-64559549056320469722011-12-22T19:06:00.000+05:302011-12-22T19:06:10.032+05:30दिवा- स्वप्न
दिवा--स्वप्न
दिवा स्वप्न देख-देख अब बहुत खुश हो चुकी , चैन से रातो को सोना भी अब तो मुहाल हो गया !आकाश की गहराइयो को लांधकर बहुत थक चुकी ,पैर जमीं पर रखना भी अब तो मुहाल हो गया !
पंखो को देखती हूँ अपनी कातर निगाहों से मैं ,ये कब के कट चुके, अब तो दर्द भी इनका तो मुहाल हो गया ! प्यार की रंगीनियों में सिमट जाना चाहती थी,तेरी बेरुखी को सहना अब तो मुहाल हो गया !
दुरी अब तोदर्शन कौर धनोयhttp://www.blogger.com/profile/06042751859429906396noreply@blogger.com13tag:blogger.com,1999:blog-1400620065861204741.post-56646850543660064552011-11-29T18:47:00.001+05:302011-11-29T20:35:09.257+05:30सपने टूटने की चुभन..सपने टूटने की चुभन
"तेरे जाने के बाद मैनें उस चादर को भी नहीं बदला "
बिस्तर की सलवटों को जब भी देखती हूँ तो मन कसमसा जाता हैं कराह उठता हैं तेरा यू चले जाना यू दग़ा देना मन पर एक बोझ -सा लद जाता हैं सामने लगे शीशे पर ,जब भी अपना अक्श देखती हूँ तो कुछ सफ़ेद तार झिलमिलाने लगते हैं आँखों पर मवाद -सा छा जाता हैं नीली स्वप्निल आँखों में कीचड़ दर्शन कौर धनोयhttp://www.blogger.com/profile/06042751859429906396noreply@blogger.com12tag:blogger.com,1999:blog-1400620065861204741.post-22716398756368468162011-11-16T15:29:00.001+05:302011-11-16T15:34:27.359+05:30उल्फतउल्फत
तुझसे दूर रहना मेरी आदत नहीं
पास रहू ये मेरी किस्मत नहीं
दूर होते हो तो बीमार -सी हो जाती हूँ ?पास रहते हो तो सरशार -सी हो जाती हूँ ? मांगना मेरी फितरत में नहीं हैं लेकिन --जाने क्यों तेरी तलबगार -सी हो जाती हूँ ?
उसकी सरगोशियाँ, बेताबियाँ,जलते जज्बे,याद आते हैं तो गुलनार -सी हो जाती हूँ ?सोचती हूँ, कभी रूठ ही जाऊ मैं उससे-दर्शन कौर धनोयhttp://www.blogger.com/profile/06042751859429906396noreply@blogger.com11tag:blogger.com,1999:blog-1400620065861204741.post-85464908695078342192011-10-11T19:10:00.000+05:302011-10-11T19:10:10.970+05:30प्रेम -दीवानी
तुम ..वो ..ऊँचाई हो ...जिसे छूने के प्रयास में -
मैं बार- बार गिरी -गिरती गई -
परत -दर -परत तुम्हारे सामने -
खुलती रही ---बिछती रही -
पर --तुम्हारे भीतर कही कुछ उद्वेलित नही हुआ ----|
मेरी आत्म -- स्वकृति को तुमने कुछ और ही अर्थ दे डाला --?
मै अंधी गुमनाम धाटियो मे तुम्हारा नाम पुकारती रही -----
धायल !
दर्शन कौर धनोयhttp://www.blogger.com/profile/06042751859429906396noreply@blogger.com13tag:blogger.com,1999:blog-1400620065861204741.post-80473709207947533082011-10-01T13:04:00.000+05:302011-10-01T13:04:00.378+05:30* आहत-मन *
आहत-मन
दिल के टूटने की आहट कहाँ होती हैं ****चंद किरचे जब सुई -सी चुभती हैं ****तब दर्द का एहसास होता हैं ****मन धायल हो कराहता हैं ****दिल टूट जाता हैं ****आँखों से अश्क बहते हैं ****गम -ऐ - इश्क किसे सुनाऊ ****कोई तो अपना नहीं ?इस बेगानी सरजमी पर --किसे तलाशती मेरी आँखे ****कहाँ खोजू अपनापन****क्यों हर कोई मस्त हैं ?क्यों अपने नहीं देते आसरा ?हम बेगानों को दर्शन कौर धनोयhttp://www.blogger.com/profile/06042751859429906396noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-1400620065861204741.post-64138873590221439312011-09-22T15:53:00.003+05:302011-09-22T17:05:02.209+05:30* दीदारे -इश्क *
क्यों ढूंढती हैं अंखिया तेरे दीदार को सनम !
एक तेरी याद काफी नहीं,मुझे मिटाने के लिए !! एक बूंद मै'य को तरसते हैं होठ मेरे ,कभी आकर मयखाना तो बता दे जालिम !!उल्फत की ठोकरों ने बना दिया पत्थर हमे !हम दिल को ढूंढते हैं ,दिल हमको ढूंढता हैं !!अंधेरो से कहो कोई और घर ढूंढें ,मेरे घर सजी हैं डोली उजालो की !!आज बिजली नहीं हैं मेरे आँगन में सनम !सितारों से कह दो मेरा घर सजा दर्शन कौर धनोयhttp://www.blogger.com/profile/06042751859429906396noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-1400620065861204741.post-12459502660783051272011-09-15T16:21:00.000+05:302011-09-15T16:21:05.043+05:30"इश्क पर जोर नहीं "
तुझको भुलाने की कसम खाई हैं खुद से सनम !तुझको भुलाना मेरी फितरत नहीं मेरी मज़बूरी हैं दिलबर !!यह न कहना की हम बे -वफ़ा थे सनम !बा -वफ़ा हमने भी दोस्ती खूब निभाई हैं दिलबर !!तुझसे तो मिलना अब नामुमकिन हैं सनम !ये दिल फिर भी तेरा सौदाई हैं दिलबर !!अब जो बिछड़े तो शायद जन्नत में मिलेगे सनम !तेरा इंतजार रहेगा आखरी दम तक दिलबर !!साथ तेरा चाह था उम्रभर के लिए सनम !बीच में ये रुसवाईयो का जंगल दर्शन कौर धनोयhttp://www.blogger.com/profile/06042751859429906396noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-1400620065861204741.post-5573827977111552872011-09-07T16:06:00.009+05:302011-09-08T11:29:08.224+05:30अकेलापन !!!!!
मैं कल भी अकेली थी --मैं आज भी अकेली ही हूँ ?
रहू कैसे तेरी यादों के खंडहर से दूर जाकर --क्यों सलीब पर लटकाऊ अपनी भावनाओ के पिंजर को इक यही तो मेरी पूंजी हैं -इस खजाने को किस पर लुटाऊ कहने को तो मैं जिन्दा हूँ -होश भी हैं मुझकोफिर यह आत्मा क्यों भटकती हैं सिर्फ तुम्हे पाने को जिन्दगी की इस अधूरी चाह को कैसे ढूँढू ? कहाँ ढूँढू -कहाँ फैलाऊ दर्शन कौर धनोयhttp://www.blogger.com/profile/06042751859429906396noreply@blogger.com10