तुझको भुलाने की कसम खाई हैं खुद से सनम !
तुझको भुलाना मेरी फितरत नहीं मेरी मज़बूरी हैं दिलबर !!
यह न कहना की हम बे -वफ़ा थे सनम !
बा -वफ़ा हमने भी दोस्ती खूब निभाई हैं दिलबर !!
तुझसे तो मिलना अब नामुमकिन हैं सनम !
ये दिल फिर भी तेरा सौदाई हैं दिलबर !!
अब जो बिछड़े तो शायद जन्नत में मिलेगे सनम !
तेरा इंतजार रहेगा आखरी दम तक दिलबर !!
साथ तेरा चाह था उम्रभर के लिए सनम !
बीच में ये रुसवाईयो का जंगल किसलिए दिलबर !!
इश्क पर जोर नहीं' मैं समझती हूँ सनम !
ये इश्क ला -इलाज होगा,ये समझ नहीं आया दिलबर !!
हंस -हंस के गैरो से क्यों बाते करते हो सनम !
इक तेरी मुस्कान के तलबगार हम भी हैं दिलबर !!
तेरी राहो से क्यों नहीं मिलती राहे मेरी सनम !.
प्यार का मका खाली था,राहे भी भटक गई दिलबर !!
मुस्कुरा कर टूटे हुए दिल के टुकडो को समेटती हूँ सनम !
क्यों हर किसी को 'ईनाम' का हक़ नहीं मिलता दिलबर !!
मेरी चाहत पर यकी क्यों नहीं होता तुझको सनम !
यह कसक प्यार की हैं, कैसे समझाऊ तुझको दिलबर !!
चाहत पर किसी का जोर क्यों नहीं चलता 'दर्शन '!
तन्हाइयो में अक्सर यही सोचती रहती हूँ मैं दिलबर !!
6 comments:
प्यार के रंगों में डूबी अनूठी रचना //बहुत बधाई आपको /मेरे ब्लॉग पर आने के लिए शुक्रिया /आशा है आगे भी आपका आशीर्वाद मेरी रचनाओं को मिलता रहेगा /
लगाये न लगे, बुझाये न बने.......:)
इश्क पर जोर नहीं' मैं समझती हूँ सनम !
ये इश्क ला -इलाज होगा,ये समझ नहीं आया दिलबर !!waah
prem ka ek anoothaa rang paros diya hai aapne...bahut khoob
भावों की अच्छी अभिव्यक्ति ।
बहुत खूब! शुक्रिया.
Post a Comment