क्यों ढूंढती हैं अंखिया तेरे दीदार को सनम !
एक तेरी याद काफी नहीं,मुझे मिटाने के लिए !!
एक बूंद मै'य को तरसते हैं होठ मेरे ,
कभी आकर मयखाना तो बता दे जालिम !!
उल्फत की ठोकरों ने बना दिया पत्थर हमे !
हम दिल को ढूंढते हैं ,दिल हमको ढूंढता हैं !!
अंधेरो से कहो कोई और घर ढूंढें ,
मेरे घर सजी हैं डोली उजालो की !!
आज बिजली नहीं हैं मेरे आँगन में सनम !
सितारों से कह दो मेरा घर सजा दे ! !
उनकी यादो के कमल, उनके प्यार का एहसास !
बस ! यही खजाना तो बचा हैं मेरे पास !!
आज भी बिजली नहीं मेरे घर अँधेरा हैं !
रौशनी ढूंढ कर लाओ के दूर सवेरा हैं !!
ज़हर का प्याला हाथ में पकडाया उस संगदिल ने !
हम तो पहले से ही मर चुके थे,उसकी यादो के बवंडर में !!
अँधेरा मांग रहा था रौशनी उधार !
एक तिल्ली न बची आशियाँ जलाने के लिए !!
8 comments:
क्यों ढूंढती हैं अंखिया तेरे दीदार को सनम !
एक तेरी याद काफी नहीं,मुझे मिटाने के लिए !! kya baat kahi hai
अँधेरा मांग रहा था रौशनी उधार !
एक तिल्ली न बची आशियाँ जलाने के लिए !!
bahut khoob likha hai :)
क्यों ढूंढती हैं अंखिया तेरे दीदार को सनम !
एक तेरी याद काफी नहीं,मुझे मिटाने के लिए !! क्या बात है....बहुत सुन्दर...
अँधेरा मांग रहा था रौशनी उधार !
एक तिल्ली न बची आशियाँ जलाने के लिए !!
बहुत खूब ! हरेक पंक्ति लाज़वाब...
♥
कविता ग़ज़ब लिखी है… वाह !
आपको सपरिवार
नवरात्रि पर्व की बधाई और शुभकामनाएं-मंगलकामनाएं !
-राजेन्द्र स्वर्णकार
अभिव्यक्ति की सुंदर प्रस्तुति....नवरात्रि की शुभकामनाएं।
अन्धेरा मांग रहा है रौशनी ... फिर चाहे उधार ही क्यों न हो ... जीने के लिए कुछ तो चाहिए ... गहरी अभिव्यक्ति ...
पलकों के झरोखे से जो दिल में उतर जाये,
छेड़ दे दिल के तार और बस प्यार हो जाये !
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