Thursday, September 22, 2011

* दीदारे -इश्क *






क्यों  ढूंढती  हैं अंखिया तेरे दीदार को सनम !
एक तेरी याद काफी नहीं,मुझे मिटाने के लिए !!  
एक बूंद मै'य को तरसते हैं होठ मेरे ,
कभी आकर मयखाना तो बता दे जालिम !!
उल्फत की ठोकरों ने बना दिया पत्थर हमे !
हम दिल को ढूंढते हैं ,दिल हमको ढूंढता हैं !!
अंधेरो से कहो कोई और घर ढूंढें ,
मेरे घर सजी हैं डोली उजालो की !!
आज बिजली नहीं हैं मेरे आँगन में सनम !
सितारों से कह दो मेरा घर सजा दे ! ! 
उनकी यादो के कमल, उनके प्यार का एहसास !
बस ! यही खजाना तो बचा हैं मेरे पास !!
आज भी  बिजली नहीं  मेरे घर अँधेरा हैं !
रौशनी ढूंढ कर लाओ के दूर सवेरा हैं  !!
ज़हर का प्याला हाथ में पकडाया उस संगदिल ने !
हम तो पहले से ही मर चुके थे,उसकी यादो के बवंडर में !!
अँधेरा मांग रहा था रौशनी उधार !
एक तिल्ली न बची आशियाँ जलाने के लिए !!



8 comments:

रश्मि प्रभा... said...

क्यों ढूंढती हैं अंखिया तेरे दीदार को सनम !
एक तेरी याद काफी नहीं,मुझे मिटाने के लिए !! kya baat kahi hai

Manish Khedawat said...

अँधेरा मांग रहा था रौशनी उधार !
एक तिल्ली न बची आशियाँ जलाने के लिए !!

bahut khoob likha hai :)

Maheshwari kaneri said...

क्यों ढूंढती हैं अंखिया तेरे दीदार को सनम !
एक तेरी याद काफी नहीं,मुझे मिटाने के लिए !! क्या बात है....बहुत सुन्दर...

Kailash Sharma said...

अँधेरा मांग रहा था रौशनी उधार !
एक तिल्ली न बची आशियाँ जलाने के लिए !!

बहुत खूब ! हरेक पंक्ति लाज़वाब...

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...




कविता ग़ज़ब लिखी है… वाह !

आपको सपरिवार
नवरात्रि पर्व की बधाई और शुभकामनाएं-मंगलकामनाएं !

-राजेन्द्र स्वर्णकार

amrendra "amar" said...

अभिव्यक्ति की सुंदर प्रस्तुति....नवरात्रि की शुभकामनाएं।

दिगम्बर नासवा said...

अन्धेरा मांग रहा है रौशनी ... फिर चाहे उधार ही क्यों न हो ... जीने के लिए कुछ तो चाहिए ... गहरी अभिव्यक्ति ...

Raj said...

पलकों के झरोखे से जो दिल में उतर जाये,
छेड़ दे दिल के तार और बस प्यार हो जाये !

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