Saturday, February 18, 2012

और मैं लौट गई ---..









मुझे अब उसकी जिन्दगी से लौट जाना चाहिए ----
क्योकिं अब हमारा समागम संभव नहीं----?
वो मुझे कदापि स्वीकार नहीं करेगा----
मैनें हर तरफ से अपनी 'हार' स्वीकार कर ली हैं----!
तो क्यों मैं मेनका बनकर,
विश्वामित्र की तपस्या भंग करूँ -----???


वो मुझे 'काम ' की देवी समझता हैं----
जिसे  एक दिन काम में ही भस्म हो जाना हैं ---
पर मैं रति -ओ - काम की देवी नहीं हूँ----
मैं प्रेम की मूरत हूँ ----?
मैं प्रेम की भाषा हूँ ----? 
मैं प्रेम की अगन हूँ ----?
मैं प्रेम की लगन हूँ ----?
मैं प्रेम की प्यास हूँ ----?
मैं प्रेम का उपहास हूँ ---?
मुझको काम की देवी कह मेरा माखौल न उडाओ ----!



मैं स्वप्न परी हूँ, नींदों में रमती हूँ -----
मैं प्रेम की जोगन  हूँ, प्रेम नाम जपती हूँ ---- 
मैं फूलों का पराग हूँ , शहद बन धुलती हूँ -----
मैं पैरो का घुंघरू हूँ , छम-- छम बजती हूँ ----
मैं  बाग़ की मेहँदी हूँ, तेरे ख्यालो में रचती हूँ ----
मुझेको  काम की देवी कह मेरा माखौल न उडाओ -----!



मैं बार -बार तेरे क़दमों से लिपटती हूँ परछाई बनकर ---
मैं बार -बार तेरी साँसों में समाती हूँ धडकन बनकर ----
मैं बार -बार लौट आती हूँ सागर की लहरें बनकर ----
मैं बार -बार गाई जाती हूँ भंवरों की गुंजन बनकर ----
मुझको काम की देवी कह मेरा माखौल न उडाओं ----!


मुझे रति -ओ - काम की देवी मत समझ ---
  मैं नीर हूँ तेरी आँखों का ..?
मैं नूर हूँ तेरे चहरे का --?
मैं हर्फ़ हूँ तेरे पन्ने का --?
         मैं सैलाब हूँ तेरी मुहब्बत का --?
        मैं मधुमास हूँ तेरे जीवन का --?
   मैं हर राज हूँ तेरे सिने का --?
   मैं साज़ हूँ तेरी सरगम का --?
मैं प्यास हूँ तेरे लबो का --?
मुझे रति -ओ -काम की देवी न समझ ???
मैं प्यार हूँ, मैं विश्वास हूँ ,मैं चाहत हूँ ????? 





काँटा समझ कर मुझ से न दामन को बचा 
उजड़े हुए चमन की एक यादगार हूँ मैं ....


4 comments:

रश्मि प्रभा... said...

बेहतरीन भाव संयोजन

मेरा मन पंछी सा said...

काँटा समझ कर मुझ से न दामन को बचा
उजड़े हुए चमन की एक यादगार हूँ मैं ....
बेहतरीन भाव संयोजन ..
सुंदर रचना....:-)

vidya said...

बहुत सुन्दर..भावपूर्ण रचना दर्शन जी...
बधाई.

डॉ. जेन्नी शबनम said...

stree ki zindagi bas aisi hi hai, duniya stree ke bina nahi fir bhi stree bezaroorat hai. bahut sahi kaha...
काँटा समझ कर मुझ से न दामन को बचा
उजड़े हुए चमन की एक यादगार हूँ मैं ....

shubhkaamnaayen.

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