Thursday, April 26, 2012

सागर और चंद आंसू !!




' कोई सागर इस दिल को बहलाता नही '




   कोई सागर इस दिल को बहलाता नहीं 
जिन्दगी की कश्ती  लगी है दांव पर 
     क्यों कोई मांझी आकर पार लगाता नहीं  ?
  कोई सागर इस दिल को बहलाता नहीं  --


गलती हमारी थी क्यों की कश्ती तूफां के हवाले !
पतवारे फैंक कर क्यों हो गए इन हवाओं के सहारे !
क्यों कोई आकर आज इस तूफां से हमें बचाता नहीं ?
कोई सागर इस दिल को बहलाता नहीं -- 






जब घर से चली थी तो ये मंजर सुहाना था !
मंजिल तक पहुंचने का इक बहाना था !
सनक थी तुझे पाने की, 
तुझसे मिलने का इक ख़्वाब था,
क्यों कोई आकर आज हमे मंजिल तक पहुंचता नहीं ?  
कोई सागर इस दिल को बहलाता नहीं --


साथ पाकर तेरा राह में गुनगुनाना चाह था मैने !
आँखों की गहराइयाँ नापकर यह एहसास जताया था मैनें !
हर परेशानी,हर मुश्किलों में सहचर्य चाहा था मैने !
क्यों कोई आकर आज हमकदम बनके राह दिखलाता नहीं ?
कोई सागर इस दिल को बहलाता नहीं -- 






जिन्दगी के इस तूफां से कैसे खुद को बचाऊं ?
कैसे समेंटू अपना कांरवा ? कहाँ नीड़ बनाऊं ?
कश्ती टूटी,घर टुटा, गुम हो गई पतवारे 
बहे जा रही हूँ जीवन के इस सैलाब में,
थक गई हूँ इस बोझ को ढ़ोते -ढ़ोते,
अश्को से नफरत !खुशियों से नफरत !
नफरत हैं अपने वजूद से --
क्यों कोई आकर आज इस दिल को दिलासा दिलाता नहीं ?
कोई सागर इस दिल को बहलाता नहीं --  



  

 आंधियो में भी कभी चिरांग जलते हैं --सोचा नही था ?
सेहरा में भी कभी फूल खिलते हैं --सोचा न था ? 
जुगनू भी कभी दिन में चमकते हैं --सोचा न था ?
कांटो पर भी कभी गुलाब खिलते हैं --सोचा न था ?
भटकाव से भी कभी राहे मिलती हैं --सोचा न था ?
दरख्सतों पर भी कभी कमल खिलते हैं --सोचा न था ?
क्यों कोई आकर आज इन सवालों को सुलझाता नहीं ?
कोई सागर इस दिल को बहलाता नहीं -- 





4 comments:

सदा said...

बेहतरीन प्रस्‍तुति।

प्रेम सरोवर said...

आपकी कविता अच्छी लगी । मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।

निर्मला कपिला said...

आंधियो में भी कभी चिरांग जलते हैं --सोचा नही था ?
सेहरा में भी कभी फूल खिलते हैं --सोचा न था ?
अपने सोचने के अनुसार ज़िन्दगी चलती ही कब है?हताशा शब्दों मे साफ झलकती है। अच्छी रचना। शुभकामनायें।

डॉ. जेन्नी शबनम said...

बहुत खूब अंदाज़े बयां... बधाई.

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