Friday, August 10, 2012

जनमअष्टमी











बात 1988 की हैं ......शायद 24 अगस्त का दिन था...  हम पंजाब से एक शादी के बाद कोटा आ रहे थे ....जनम अष्टमी का दिन था ....हम सेकण्ड क्लास के कूपे में थे ..पहले सेकंड क्लास में लेडिस कूपा होता था ...साथ ही मेरी ननदे और देवरानी- देवर और मिस्टर भी थे बच्चे भी थे ... 

हम बातो में मशगुल थे जब मथुरा आया ..सारा शहर बिजली से जगमगा रहा था ..हमने दूर से ही नमस्कार किया और कान्हा को जन्मदिन की बधाई दी ....फिर हम सब सो गए ...

रात को अचानक मुझे लगा कोई मेरा गला दबा रहा है ..चलती गाडी में कोई मेरी चेन खीच रहा था . ..मेरा दम घुटने लगा ... मैं खिड़की की तरफ ही सो रही थी  ...सामने मेरी देवरानी थी ..मैंने खिड़की पर देखा तो एक काला कलूटा आदमी बाहर खड़ा था  और उसके हाथ में मेरी 2 तोले की चेन थी ....मेरी चींख निकल गई ..चींख सुनकर सब दौड़कर आये ...पर तब तक वो चलती गाडी से उतारकर भाग गया था...उसके साथ कई और आदमी भी थे ...मेरी देवरानी की कान की बाली भी उसके एक साथी ने खिंची थी  ...किसी बूढी महिला का तो कान ही कट गया था .. उस दिन चलती गाडी में कई लोगो के जेवर खींचे गए ...पुलिस आई और रपट भी लिखवाई पर कोई फायदा नहीं .....

यह वाकिया मुझे हर  जनमअष्टमी के दिन याद आता है...और मेरी 2 तोले की चैन भी ...उस दिन से मैने सफ़र में जेवर न पहनने की कसम खाई .....  



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