Saturday, July 30, 2011

क्यों होते हें ये धमाके ?????





अरमां तमाम उम्र के सीने में दफन हैं !
हम चलते-फ़िरते लोग मजारों से कम नहीं !! (अज्ञात)


बचपन की वो प्यारी गुड़िया
मुझको हरदम याद आती है
गोल -मटोल आँखे थी उसकी 
परियों जैसी लगती थी 

एक दिन पापा ने उसको 
मेरी गोद में पटका था
कहते थे- तेरी है बन्नो --
हरदम संग -संग रहना है



गोद में उठाकर उसको 
सारी बस्ती घुमा करती थी मैं ?
कोई  पूछता नाम क्या है बन्नो --
अप्पू !सबको बतलाती थी मैं  !
अप्पू !को खिलाती थी मैं !
अप्पू !को पहनाती थी मैं !
अप्पू के संग सोती थी मैं !
अप्पू का हर दुःख सहती थी मैं --




इक दिन वो बे-जान हो गई ?
मुझसे यूँ अनजान हो गई ?
हाथ किधर था --?
पैर कहाँ हैं --?
खून ???
खून से सन गई थी ?

जिस्म किधर था पता नहीं --?
जान किधर थी अता नहीं --?
रोते-रोते धूम  रही थी --
बिखरे टुकड़े ढूंढ रही थी --? 




ऐसा क्यों होता है हरदम --
खेलने वाले खेल जाते हैं --
अपने फिर गुम हो जाते हैं --
आँखों में आंसू की धारा --
अपने ही क्यों दे जाते हैं --????

बिन होली क्यों खेली जाती 
खून से भरी पिचकारियाँ --
बिन दिवाली क्यों चलाई जाती 
बमों की यह लड़ियाँ  --



गुम हुए अपनो को फिर हम --
कैसे ढूंढें ? कहाँ ढूंढें ..??
क्यों कुछ पता नही दे जाते ?
क्यों होते हैं ये धमाके ?
क्यों होते हैं ये धमाके ?????   

  

क्यों होते हैं ये धमाके ?????      

          

13 comments:

Arun said...

उस विनाशकारी विस्‍पोट के बाद, शेष रही मात्र

चिथडे हुई मानव देह और एक जहर बुझी खामोशी

अब बढ रहे है वही क्रूर कातिल हाथ्‍ा और
रक्‍त से सने पावं उनके
हमारी ओर
सुनाई दे रहा है मुझे पाशविकता का अट़ठाहास

कर्णभेदी

दर्शन कौर धनोय said...

Bahut sunder arun !dhnywaad !!!

मुकेश कुमार सिन्हा said...

uff ye trasadi kyon aati hai...
kyonl log aise bedard ho jate hain
kyon nanhi jaano ko bhi nahi bakhsta
ye bomb ya banduk.........:(

bahut dard chhalk raha hai...
sach me aapke emotions ko pranam!!
bahut pyari rachna....darshan jee!

रश्मि प्रभा... said...

dard ka gubaar hai....

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

क्यों होते हैं ये धमाके? यक्ष प्रश्न है।
संवेदनाओं से भरपूर कविता के लिए आभार।

Er. सत्यम शिवम said...

ह्रदयविदारक है ये.......स्नेह से तो नेह ही नहीं इन आततायियों को।

Suresh kumar said...

क्यों होते हैं ये धमाके ????? किसी को नहीं पता जी बहुत ही अच्छी कविता लिखी आपने बहुत ही खुबसूरत है जी धन्यवाद् ....

POOJA... said...

bahut hi maarmik... parantu satya...
ant mei sirf sawaal hi rah jata hai... chithdon aur lahu mei lipta dard rah jata hai...

S.N SHUKLA said...

बहुत सुन्दर रचना, बहुत खूबसूरत प्रस्तुति.

aarkay said...

" क्यों होते हैं ये धमाके " शीर्षक मुकेश जी के गाये एक गीत की याद दिलाता है:

आसमान पे है खुदा और ज़मीन पे हम
आजकल वो इस तरफ देखता है कम
................................................
................................................
हो रही है लूट मार फट रहे हैं बम....... "
धमाके करने वालों से बड़ा इंसानियत का दुश्मन कौन हो सकता है !
चित्रों ने तो कविता को और भी मार्मिक बना दिया है.
उत्तम प्रस्तुति !

Sachin Kumar Gurjar said...

मार्मिक , दिल को छु गयी पंग्तिया ...

Sachin tyagi said...

दर्शन जी बहुत ही दर्द से भरी कविता थी।

Harshita Joshi said...

इस बात का जवाब तो कोई भी नहीं दे सकता बहुत ही यथार्थपूर्ण पंक्तियाँ

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