Wednesday, September 7, 2011

अकेलापन !!!!!








मैं कल भी अकेली थी --मैं आज भी अकेली ही हूँ ?
रहू  कैसे तेरी यादों के खंडहर से दूर जाकर --
क्यों सलीब पर लटकाऊ अपनी भावनाओ के पिंजर को 
इक यही तो मेरी पूंजी हैं -इस खजाने को किस पर लुटाऊ 
कहने को तो मैं जिन्दा हूँ -होश भी हैं मुझको
फिर यह आत्मा क्यों भटकती हैं सिर्फ तुम्हे पाने को 
जिन्दगी की इस अधूरी चाह को कैसे ढूँढू ? कहाँ ढूँढू -
कहाँ फैलाऊ अपना आँचल! कहाँ माथा रगडू
इस स्वार्थी लोक में मैंरा तो कोई सगा नहीं ?
सभी बेगाने हैं यहाँ मेरा तो कोई अपना नहीं !    





वो  लोग जिनको समझती थी जिन्दगी अपनी !  
वही लोग दिल को दुखाने की बात करते हैं !

10 comments:

रश्मि प्रभा... said...

क्यों सलीब पर लटकाऊ अपनी भावनाओ के पिंजर को
इक यही तो मेरी पूंजी हैं ...dil ko chhute ehsaas

संजय भास्‍कर said...

सुंदर भाव लिए प्रभावित करती रचना .....!

virendra sharma said...

वो लोग जिनको समझती थी जिन्दगी अपनी !
वही लोग दिल को दुखाने की बात करते हैं !
इतने गहन एहसास समेटे हुए है यह पोस्ट .वाह !यकीन नहीं होता .

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

मन को झंकृत कर जाने वाले भाव...

------
कब तक ढ़ोना है मम्‍मी, यह बस्‍ते का भार?
आओ लल्‍लू, आओ पलल्‍लू, सुनलो नई कहानी।

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...

भरजाईजी
सादर प्रणाम !

आपके साथ यात्रा करने का जितना आनन्द है , उतना ही कविता का !
यह आत्मा क्यों भटकती हैं सिर्फ तुम्हे पाने को
ज़िंदगी की इस अधूरी चाह को कैसे ढूंढ़ूं ? कहां ढूंढ़ूं -
कहां फैलाऊ अपना आंचल! कहां माथा रगड़ूं
इस स्वार्थी लोक में मेरा तो कोई सगा नहीं ?
सभी बेगाने हैं यहां मेरा तो कोई अपना नहीं !
वो लोग जिनको समझती थी ज़िंदगी अपनी !
वही लोग दिल को दुखाने की बात करते हैं !

संसार की अस्सारता और परमात्मा से प्रेम जैसी भव्यता-दिव्यता है आपकी इन पंक्तियों में … बहुत सुंदर !

हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार

हरकीरत ' हीर' said...

फिर यह आत्मा क्यों भटकती हैं सिर्फ तुम्हे पाने को ....
ओये होए ...
इस भटकती आत्मा को विराम मिले ......


@ भरजाईजी ....?
ओये होए ...

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...

# हीरजी
ख़ुद दर्शन जी ने बताया है कि उनका ब्याह राजस्थान में हुआ है …
… और मैं राजस्थान का हूं ही ! तो दर्शन जी मेरी भरजाई हुई न ! :)

हरकीरत ' हीर' said...

बधाइयाँ देवर जी .....
काला डोरिया कुंडे नाल अडियाई ओये
छोटा देवरा भाबो नाल लडियाई ओये

दर्शन कौर धनोय said...

शांत ! लड़ो मत; एक छोटी बहन हैं और दूसरा छोटा देवर ! बात तो टक्कर की हैं भाई ?????

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...

.


भाब्भी ! तेरी बहना को माना
हाए राम कुड़ियों का है ज़माना …


हो रब्बा मेरे मुझको बचाना !

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