सपने टूटने की चुभन
"तेरे जाने के बाद मैनें उस चादर को भी नहीं बदला "
बिस्तर की सलवटों को जब भी देखती हूँ
तो मन कसमसा जाता हैं
कराह उठता हैं
तेरा यू चले जाना
यू दग़ा देना
मन पर एक बोझ -सा लद जाता हैं
सामने लगे शीशे पर ,
जब भी अपना अक्श देखती हूँ
तो कुछ सफ़ेद तार झिलमिलाने लगते हैं
आँखों पर मवाद -सा छा जाता हैं
नीली स्वप्निल आँखों में कीचड़ -सा भर जाता हैं
" मैं कुछ मुटिया -सी गई हूँ "--सोचती हूँ
खूबसूरती फुर र र र से उड़ गई हैं
जवानी दबे पाँव कहीं चली गई हैं
आँखों पर झुरियो की हलकी -सी परत का जमना
उफ़ ! क्या बुढ़ापे ने दस्तक दे दी हैं ?
अपने मौजूदा वजूद को क्यों नकारने लगी हूँ ..?
बालो की सफेदी को क्यों छिपाने लगी हूँ ?
चुप -के से शीशे को निकालकर ,
उन चंद बालो को तोड़ने लगती हूँ ?
ऊहूँ !"मुए, कहीं ओर जाओ ..यहाँ तुम्हारा कोई काम नहीं "
जाने क्यों गुस्सा आता हैं जब कोई 'आंटी' कहता हैं ?
मैं ओर आंटी ! कभी नहीं ?
क्यों खुद को आज भी अल्हड समझती हूँ ?
अपने ही दायरे में कैद हूँ --???
अपने ही सपनो में विचरण कर रहीं हूँ ?
मैं खुद , कब इस जीवन -चक्र का हिस्सा बन गई -पता ही नहीं चला !
सपने टूटने का दर्द थोडा तो होता हैं न ????
12 comments:
tutte sapne ...?? ye to bakar ki baten hain... har sakhs ko kabhi na kabhi apne umar ke har padao ko paar karna hi hoga...
beshak aapni soch se sahmat nahi hoon, par behtreeen rachna... bahut khubsurat sa dard dikh raha hai...!!
waise har saks ko pyar to milta hi hai, beshak wo kab mile aur kahan ye alag baat hai!!
मैं खुद , कब इस जीवन -चक्र का हिस्सा बन गई -पता ही नहीं चला !
....जीवन के हरेक मोड़ को स्वीकार करना होता है...बहुत मर्मस्पर्शी...रचना के भाव दिल को छू जाते हैं...
सपने के टूटने का दर्द....अच्छी प्रस्तुति..
" मैं कुछ मुटिया -सी गई हूँ "--सोचती हूँ
खूबसूरती फुर र र र से उड़ गई हैं
जवानी दबे पाँव कहीं चली गई हैं
आँखों पर झुरियो की हलकी -सी परत का जमना
उफ़ ! क्या बुढ़ापे ने दस्तक दे दी हैं ... kitna fark aata jata hai kal aaj me
दर्द में डुबे हुवे लफ्ज
वाह वाह बहुत ही दिलक्स पंक्तियाँ लिखी हैं ......बधाइयां
आपका मेरे ब्लॉग पर हार्दिक अभिन्दन हैं
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अच्छा भाव बोध लिए यथार्थ का स्पर्श करती रचना .
I had to read this three times because I wanted to be sure on some of your points. I agree on almost everything here, and I am impressed with how well you wrote this article.
From Great talent
अपने मौजूदा वजूद को क्यों नकारने लगी हूँ ..?
बालो की सफेदी को क्यों छिपाने लगी हूँ ?
चुप -के से शीशे को निकालकर ,
उन चंद बालो को तोड़ने लगती हूँ ?
Bahut khoob.
soaked in sentiments and reality .
बहुत सुन्दर...!
आपका पोस्ट पर आना बहुत ही अच्छा लगा मेरे नए पोस्ट "खुशवंत सिंह" पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
आपके पोस्ट पर आना सार्थक होता है । मेरे नए पोस्ट "खुशवंत सिंह" पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
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