Wednesday, September 5, 2012

समुंदर का मोती







वो समुंदर का मोती था ...सिप उसका घर था ..
बाहरी  दुनियाँ से वो अनजान था .....
अपने दोस्तों से उसको बहुत प्यार था ...
कुर्बान था वो अपनी दोस्ती पर ,
मस्त मौला बना वो गुनगुनाता रहता था ...
दोस्तों के छिपे खंजर से वो अनजान था ..

एक दिन उसने दोस्तों का असली रूप देखा ..
दिल टूट गया उसका ..
एक भूचाल -सा आ गया उसके जीवन में ..
वो अंदर तक तिडक गया ...
फिर भी वो शांत रहा ...
शांति से निकल गया दूर बहुत दूर ...
इस स्वार्थी दुनिया से परे ...
अपनी छोटी -सी दुनियां में ...
जहाँ वो आज खुश है ...पर -----
"दिल पर लगी चोट कभी -कभी हरी हो  जाती है ..
खून बहने लगता है ...कराहटे निकलने लगती है ..."



12 comments:

सदा said...

बहुत बढिया ।

ANULATA RAJ NAIR said...

दिल को छू गयी रचना....
सच है मन की चोट कभी सूखती नहीं....

सादर
अनु

vandana gupta said...

सच को कहती सुन्दर अभिव्यक्ति।

संध्या शर्मा said...

सुन्दर अभिव्यक्ति...

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...





लोहड़ी की बहुत बहुत बधाई और हार्दिक मंगलकामनाएं !

साथ ही
मकर संक्रांति की शुभकामनाएं !
राजेन्द्र स्वर्णकार
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Darshan Darvesh said...

सच को बयाँ करती रचना |

Dinesh pareek said...

नया आयाम देती आपकी ये बहुत उम्दा रचना ..भाव पूर्ण रचना .. बहुत खूब अच्छी रचना इस के लिए आपको बहुत - बहुत बधाई

मेरी नई रचना

मेरे अपने

खुशबू
प्रेमविरह

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

उम्दा प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...

डॉ. जेन्नी शबनम said...

भावपूर्ण अभिव्यक्ति, शुभकामनाएँ.

Satish Saxena said...

दर्द की बेहतर अभिव्यक्ति ..

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

1 Sal ho gaya, blog par karahaten nikalni band ho gayi :)

दर्शन कौर धनोय said...

jab se bimar hui hu thodi der hi p c par bhith pati hu ...isliye post nahi kar pati ...

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