असम्भव की गहरी खाई में गिरी हुई ****
एक 'कील' हूँ मैं *** ?
साधारण ***
जंग लगी ***
जंग लगी ***
खुद से ही टूटी हुई **
थकी ???
कमजोर !!!
तुम्हारा तनिक -सा सपर्श ,,,
मुझे जिन्दगी दे सकता हैं प्रिये !
मुझे उठाकर अपने कॉलर पर सजा लो ****
मैं फूल बनकर खिल जाउंगी !
मुझे उठाकर अपने पहलु में सुला लो ****
मैं प्रेमिका बनकर लिपट जाउंगी !
मुझे उठाकर अपने सीने में छिपा लो ****
मैं याद बनकर छिप जाउंगी !
मुझे उठाकर अपने प्याले में ढाल लो ****
मैं नशा बनकर छा जाउंगी !
मुझे उठाकर अपनी राह का हमसफ़र बना लो ****
मुझे उठाकर अपनी राह का हमसफ़र बना लो ****
मैं राह के रोड़े हटा कलियाँ बिखरा दूंगी!
मुझे उठाकर सर का ताज बना लो ****
मैं दुनियां को तुम्हारे क़दमों में झुका दूंगी !
मैं तुम्हे सपनों के हिंडोले में बैठकर ,
तीसरी दुनियां की सैर करवाउंगी !
मैं तुम्हारे क़दमों में आँचल बिछा कर,
तुम्हें कांटो से बचाउंगी !
मैं तुम्हें मन -मंदिर का देवता बनाकर,
दिनरात तुम्हारी पूजा करुँगी !
मैं तुम्हें अपना सर्वस्त्र देकर,
अमर -लता की तरह लिपट जाउंगी !
मैं तुम्हारी ख्वाहिश में ही अपना मंका ढूंढ कर ,
तुम्हारे साथ ही बह जाउंगी !
नजर नहीं आती मुझे कोई मंजिल ?
डोल रही हैं मेरी किश्ती भंवर में,
अगर तेरे प्यार का सहारा मिल जाए तो,
इस 'जंग' लगी 'कील' का जीवन संवर जाए ...
"तुम्हें अपना बनाना मेरे प्यार की इन्तेहाँ होगी ?
तुमसे बिछड़ना मेरे जीवन की नाकामयाबी ?? "
4 comments:
बहुत सुन्दर....
कोमल भाव एक कठोर कील के माध्यम से.....
अद्भुत..
सादर
अनु
अद्भुत , सुन्दर
एक कील से जिंदगी मन मंदिर की तुलना , कमाल !!
Gaagar men saagar si hain rachnaayen.
............
ये है- प्रसन्न यंत्र!
बीमार कर देते हैं खूबसूरत चेहरे...
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