Wednesday, September 5, 2012

समुंदर का मोती







वो समुंदर का मोती था ...सिप उसका घर था ..
बाहरी  दुनियाँ से वो अनजान था .....
अपने दोस्तों से उसको बहुत प्यार था ...
कुर्बान था वो अपनी दोस्ती पर ,
मस्त मौला बना वो गुनगुनाता रहता था ...
दोस्तों के छिपे खंजर से वो अनजान था ..

एक दिन उसने दोस्तों का असली रूप देखा ..
दिल टूट गया उसका ..
एक भूचाल -सा आ गया उसके जीवन में ..
वो अंदर तक तिडक गया ...
फिर भी वो शांत रहा ...
शांति से निकल गया दूर बहुत दूर ...
इस स्वार्थी दुनिया से परे ...
अपनी छोटी -सी दुनियां में ...
जहाँ वो आज खुश है ...पर -----
"दिल पर लगी चोट कभी -कभी हरी हो  जाती है ..
खून बहने लगता है ...कराहटे निकलने लगती है ..."



Friday, August 10, 2012

जनमअष्टमी











बात 1988 की हैं ......शायद 24 अगस्त का दिन था...  हम पंजाब से एक शादी के बाद कोटा आ रहे थे ....जनम अष्टमी का दिन था ....हम सेकण्ड क्लास के कूपे में थे ..पहले सेकंड क्लास में लेडिस कूपा होता था ...साथ ही मेरी ननदे और देवरानी- देवर और मिस्टर भी थे बच्चे भी थे ... 

हम बातो में मशगुल थे जब मथुरा आया ..सारा शहर बिजली से जगमगा रहा था ..हमने दूर से ही नमस्कार किया और कान्हा को जन्मदिन की बधाई दी ....फिर हम सब सो गए ...

रात को अचानक मुझे लगा कोई मेरा गला दबा रहा है ..चलती गाडी में कोई मेरी चेन खीच रहा था . ..मेरा दम घुटने लगा ... मैं खिड़की की तरफ ही सो रही थी  ...सामने मेरी देवरानी थी ..मैंने खिड़की पर देखा तो एक काला कलूटा आदमी बाहर खड़ा था  और उसके हाथ में मेरी 2 तोले की चेन थी ....मेरी चींख निकल गई ..चींख सुनकर सब दौड़कर आये ...पर तब तक वो चलती गाडी से उतारकर भाग गया था...उसके साथ कई और आदमी भी थे ...मेरी देवरानी की कान की बाली भी उसके एक साथी ने खिंची थी  ...किसी बूढी महिला का तो कान ही कट गया था .. उस दिन चलती गाडी में कई लोगो के जेवर खींचे गए ...पुलिस आई और रपट भी लिखवाई पर कोई फायदा नहीं .....

यह वाकिया मुझे हर  जनमअष्टमी के दिन याद आता है...और मेरी 2 तोले की चैन भी ...उस दिन से मैने सफ़र में जेवर न पहनने की कसम खाई .....  



Wednesday, August 1, 2012

मैं और मेरी तन्हाईयाँ -----!









"अपने फ़साने को मेरी आँखों में बसने दो !
न जाने किस पल ये शमा गुल हो जाए !"  



बर्फ की मानिंद चुप -सी थी मैं ----क्या कहूँ  ?
कोई कोलाहल नहीं ?
एक सर्द -सी सिहरन भोगकर,
समझती थी की   "जिन्दा हूँ मैं " ?
कैसे ????
उसका अहम मुझे बार -बार ठोकर मारता रहा --
और मैं ! एक छोटे पिल्लै की तरह --
बार -बार उसके  कदमो से लिपटती रही --
नाहक अहंकार हैं उसे ?
क्यों इतना गरूर हैं उसे ?
क्या कोई इतना अहंकारी भी हो सकता हैं  ?
किस बात का धमंड हैं उसे ???
सोचकर दंग रह जाती हूँ मैं ---

कई बार चाहकर भी उसे कह नहीं पाती हूँ ?
अपने बुने जाल में फंसकर रह गई हूँ  ?
दर्द के सैलाब में  बहे जा रही हूँ --
मज़बूरी की जंजीरों ने जैसे सारी कायनात को जकड़ रखा हैं --
और मैं ,,,,
अनंत  जल-राशी के भंवर में फंसती जा रही हूँ ?
आगे तो सिर्फ भटकाव हैं ? मौत हैं ..?
समझती हूँ --  
पर, चाहकर भी खुद को इस जाल से छुड़ा नहीं पाती हूँ

ख्वाबों को देखना मेरी आदत ही नहीं मज़बूरी भी हैं  
खवाबों में जीने वाली एक मासूम लड़की --
जब कोई चुराता हैं उन सपने को
 तो जो तडप होती हैं उसे क्या तुम सहज ले सकते हो ?
यकीनन नहीं ,,,,,,
सोचती हूँ -----
क्या मैं कोई अभिशप्त यक्षिणी हूँ ?
जो बरसो से तुम्हारा इन्तजार कर रही हूँ  ?
या अकेलेपन का वीरान जंगल हूँ --?
जहाँ देवनार के भयानक वृक्ष मुझे घूर रहे हैं !
क्या ठंडा और सिहरन देने वाला कोई शगूफा हूँ ?
जो फूटने को बैताब  हैं !
या दावानल हूँ जलता  हुआ ?
जो बहने को बेकरार हैं    ?

क्यों अपना अतीत और वर्तमान ढ़ो  रही हूँ  ?
क्यों अतीत की  परछाईया पीछे पड़ी हैं  ?
चाहकर भी छुटकार नहीं ?
असमय का खलल !
निकटता और दुरी का एक समीकरण ---
जो कभी सही हो जाता हैं ?
 और कभी गलत हो जाता हैं ?

सोचती हूँ तो चेहरा विदूषक हो जाता हैं ?
लाल -पीली लपटें निकलने लगती हैं  ?
और शरीर जैसे शव -दाह हो जाता हैं ?
 मृत- प्रायः !!!!

मेरा दुःख मेरा हैं ,मेरा सुख मेरा हैं !
अब इसमें किसी को भी आने की इजाजत नहीं हैं ?
न तुम्हारा अहंकार !
न तुम्हारा तिरस्कार !

अब मैं हूँ और मेरी तन्हाईयाँ -----!

Sunday, July 22, 2012

तीसरा पहर ....








 जिन्दगी के इस तीसरे पहर में ---
जब मुझे तुमसे प्यार होता है ?

तो महसूस होता है मानो जलजला आ गया हो ?
और मुसलाधार बारिश उसे शांत कर रही हो ?
मेरा स म्पूर्ण व्यक्तित्व मानो निखर गया हो ?
मेरे जीवन का सपना जैसे साकार हो गया हो ....?

जब मेरी गुदाज़  बांहों में तुम्हारा जिस्म  आता हैं 
तो यु लगता है मानो मृग को कस्तूरी का भान  हुआ हो 
और वो कुलांचें भरता हुआ इधर -उधर दौड़ता फिर रहा हो  
मानो कस्तुरी की चाह में कुछ  खोजता फिर रहा हो ..?

जब तेरे जलते हुए होंठ मेरे प्यासे होठों को  छूते है 
जब तेरा  अस्तित्व मेरे समूचे व्यक्तित्व को निगलता है 
तब रगों में दौड़ने वाला रक्त अमृत बन जाता है  
तब मदहोशी का यह अमृत मैं घूंट -घूंट पीती हूँ ..?

तब प्यासी लता बन मै तेरे तने से लिपट जाती हूँ 
और तुम मुझे अपनी बांहों में समेट लेते हो 
तब मेरी अनन्त  की प्यास बुझने लगती है 
और मैं तुम्हारी बांहों में दम तोड़ देती हूँ --

तब मेरा नया जनम होता है 
एक बार फिर से -----
तेरे सहचर्य का सुख भोगने के लिए ---- ?




Tuesday, July 10, 2012

एक 'कील' हूँ मैं ** ?



एक 'कील' हूँ मैं 





असम्भव की गहरी खाई में गिरी हुई ****
एक 'कील' हूँ मैं ***  ?
साधारण ***
जंग लगी ***
खुद से ही टूटी हुई **
थकी ???
 कमजोर !!!

तुम्हारा  तनिक -सा सपर्श ,,,
मुझे जिन्दगी दे सकता हैं प्रिये !









मुझे उठाकर अपने कॉलर पर सजा लो ****
मैं फूल बनकर खिल जाउंगी !
मुझे उठाकर अपने पहलु में सुला लो ****
 मैं प्रेमिका बनकर लिपट जाउंगी !
मुझे उठाकर अपने सीने में छिपा लो ****
मैं याद बनकर छिप जाउंगी !
मुझे उठाकर अपने प्याले में ढाल लो ****
मैं नशा बनकर छा जाउंगी !
मुझे उठाकर अपनी राह का हमसफ़र बना लो ****
 मैं राह के रोड़े हटा कलियाँ बिखरा दूंगी!
मुझे उठाकर सर का ताज बना लो ****
मैं दुनियां को तुम्हारे क़दमों में झुका दूंगी !





मैं तुम्हे सपनों के हिंडोले में बैठकर ,
तीसरी दुनियां की सैर करवाउंगी !
मैं तुम्हारे क़दमों में आँचल बिछा कर, 
तुम्हें कांटो से बचाउंगी !
मैं तुम्हें मन -मंदिर का देवता बनाकर, 
दिनरात तुम्हारी पूजा करुँगी !
मैं तुम्हें अपना सर्वस्त्र देकर, 
अमर -लता की तरह लिपट जाउंगी !
मैं तुम्हारी ख्वाहिश में ही अपना मंका ढूंढ कर ,
तुम्हारे साथ ही बह जाउंगी !











नजर नहीं आती मुझे कोई मंजिल ?
डोल रही हैं मेरी किश्ती भंवर में,
अगर तेरे प्यार का सहारा मिल जाए तो, 
इस 'जंग' लगी 'कील' का जीवन संवर जाए ...


"तुम्हें अपना बनाना मेरे प्यार की इन्तेहाँ होगी ?
तुमसे बिछड़ना मेरे जीवन की नाकामयाबी ??  " 

  

Sunday, June 24, 2012

नादानी....





दो घडी के साथ को हम प्यार समझ बैठे ..
नादानी यह हमसे हुई हम क्या समझ बैठे ...!

उसने चूमा ही था कुछ ऐसे इन पलकों को ..
नादानी यह हमसे हुई हम प्यार समझ बैठे ...!

पकड़ा था उसने हाथ जब भीड़ भरी सडक पर ...
नादानी यह हमसे हुई हम प्यार समझ बैठे ...!

धडकती थी धड़कने उनके नाम से मेरी ..
नादानी यह हमसे हुई हम प्यार समझ बैठे ..!

चाह था उनका साथ रहे जिन्दगी में हर -पल
नादानी यह हमसे हुई हम ख्वाब को सच समझ बैठे ......!



Friday, June 1, 2012

एक प्यार भरा गीत !




तेरे मेरे बीच एक दिवार है मेरी जान !
तोड़ना चाहां पर वक्ता था सरकता गया !! 


************************************************************



!! आज एक प्यार भरा गीत !!





वह बोला -- "मुझसे प्यार करती हो "
मैने कहा --"हाँ "
वह बोला -- "मुझे छोड़ तो न जाओंगी "
मैने कहा --" न "
वह बोला-- "यह सब मेरेलिए है " 

मैने उसकी सपनील आँखों में डूबकर कहा -- "हां "

" यह साँसों की सरगम तुम्हारी  है प्रिये !
यह आँखों की चिलमन तुम्हारी है प्रिये !
यह सीने की धड्कन तुम्हारी है प्रिये !
इस दिल की तड़पन तुम्हारी है प्रिये !"





वह विस्मय -सा मुझे देखता रहा --


" तुम भंवर बन मेरे अधरों को चुमों !
तुम काजल बन मेरे नैनो में बसों !
तुम पवन बन मेरे बालो से खेलो !
  तुम साया बन मेरे संग -संग चलो !
 तुम नशा बन मेरे ख्यालो में घुमो  "

वो थोडा सकुचाया ,शरमाया ,मेरे नजदीक आया और बोला --

" क्या तुम हीर बन सकती हो ,
मै राँझा बन जाउंगा !
क्या तुम साकी बन सकती हो ,
मै मयखाना बन जाउंगा !
क्या तुम लहर बन सकती हो ,
मै सागर बन जाउंगा !"





मैने उसका हाथ अपने हाथो में लिया और हंसकर कहा --

" बहुत कठिन है राह गुजर -यारा ;
मगर हम साथ -साथ चलेगे -!
बहुत लम्बा है जीवन का फलसफा ,
मगर हम साथ -साथ चलेगे - !
ता-उम्र न कटे ,न कटे जिन्दगी ,
मगर हम साथ -साथ चलेगे --!
नशे मै चूर हूँ ,तुम्हे भी कोई होश नही ,
दिखाई नही दे रही कोई डगर
मगर हम साथ -साथ चलेंगे --!
इक दिन की मुलाक़ात की गनीमत है 'दर्शी '
किसे है कल की खबर
मगर हम साथ -साथ चलेगे --!
अभी तो जल रहे है चिराग राह में
बहुत दूर है  सहर....
मगर हम साथ -साथ चलेगे --!
न होगा चाँद ,न तारे टीमटीमाएगे
मस्या के काले साए न हमारे कदम डगमगाएगे
राह में  रोड़े तो अनेक होगे दिलबर
मिलन की घड़ी हो न हो
मगर हम साथ -साथ चलेगे  ...!"


   
हम हमेशा साथ -साथ चलेगे 

एक प्यार भरा गीत !







तेरे मेरे बीच एक दिवार है मेरी जान !
तोड़ना चाहां पर वक्ता था सरकता गया !! 


************************************************************



!! आज एक प्यार भरा गीत !!





वह बोला -- "मुझसे प्यार करती हो "
मैने कहा --"हाँ "
वह बोला -- "मुझे छोड़ तो न जाओंगी "
मैने कहा --" न "
वह बोला-- "यह सब मेरेलिए है " 

मैने उसकी सपनील आँखों में डूबकर कहा -- "हां "

" यह साँसों की सरगम तुम्हारी  है प्रिये !
यह आँखों की चिलमन तुम्हारी है प्रिये !
यह सीने की धड्कन तुम्हारी है प्रिये !
इस दिल की तड़पन तुम्हारी है प्रिये !"





वह विस्मय -सा मुझे देखता रहा --


" तुम भंवर बन मेरे अधरों को चुमों !
तुम काजल बन मेरे नैनो में बसों !
तुम पवन बन मेरे बालो से खेलो !
  तुम साया बन मेरे संग -संग चलो !
 तुम नशा बन मेरे ख्यालो में घुमो  "

वो थोडा सकुचाया ,शरमाया ,मेरे नजदीक आया और बोला --

" क्या तुम हीर बन सकती हो ,
मै राँझा बन जाउंगा !
क्या तुम साकी बन सकती हो ,
मै मयखाना बन जाउंगा !
क्या तुम लहर बन सकती हो ,
मै सागर बन जाउंगा !"





मैने उसका हाथ अपने हाथो में लिया और हंसकर कहा --

" बहुत कठिन है राह गुजर -यारा ;
मगर हम साथ -साथ चलेगे -!
बहुत लम्बा है जीवन का फलसफा ,
मगर हम साथ -साथ चलेगे - !
ता-उम्र न कटे ,न कटे जिन्दगी ,
मगर हम साथ -साथ चलेगे --!
नशे मै चूर हूँ ,तुम्हे भी कोई होश नही ,
दिखाई नही दे रही कोई डगर
मगर हम साथ -साथ चलेंगे --!
इक दिन की मुलाक़ात की गनीमत है 'दर्शी '
किसे है कल की खबर
मगर हम साथ -साथ चलेगे --!
अभी तो जल रहे है चिराग राह में
बहुत दूर है  सहर....
मगर हम साथ -साथ चलेगे --!
न होगा चाँद ,न तारे टीमटीमाएगे
मस्या के काले साए न हमारे कदम डगमगाएगे
राह में  रोड़े तो अनेक होगे दिलबर
मिलन की घड़ी हो न हो
मगर हम साथ -साथ चलेगे  ...!"


   
हम हमेशा साथ -साथ चलेगे 

Thursday, April 26, 2012

सागर और चंद आंसू !!




' कोई सागर इस दिल को बहलाता नही '




   कोई सागर इस दिल को बहलाता नहीं 
जिन्दगी की कश्ती  लगी है दांव पर 
     क्यों कोई मांझी आकर पार लगाता नहीं  ?
  कोई सागर इस दिल को बहलाता नहीं  --


गलती हमारी थी क्यों की कश्ती तूफां के हवाले !
पतवारे फैंक कर क्यों हो गए इन हवाओं के सहारे !
क्यों कोई आकर आज इस तूफां से हमें बचाता नहीं ?
कोई सागर इस दिल को बहलाता नहीं -- 






जब घर से चली थी तो ये मंजर सुहाना था !
मंजिल तक पहुंचने का इक बहाना था !
सनक थी तुझे पाने की, 
तुझसे मिलने का इक ख़्वाब था,
क्यों कोई आकर आज हमे मंजिल तक पहुंचता नहीं ?  
कोई सागर इस दिल को बहलाता नहीं --


साथ पाकर तेरा राह में गुनगुनाना चाह था मैने !
आँखों की गहराइयाँ नापकर यह एहसास जताया था मैनें !
हर परेशानी,हर मुश्किलों में सहचर्य चाहा था मैने !
क्यों कोई आकर आज हमकदम बनके राह दिखलाता नहीं ?
कोई सागर इस दिल को बहलाता नहीं -- 






जिन्दगी के इस तूफां से कैसे खुद को बचाऊं ?
कैसे समेंटू अपना कांरवा ? कहाँ नीड़ बनाऊं ?
कश्ती टूटी,घर टुटा, गुम हो गई पतवारे 
बहे जा रही हूँ जीवन के इस सैलाब में,
थक गई हूँ इस बोझ को ढ़ोते -ढ़ोते,
अश्को से नफरत !खुशियों से नफरत !
नफरत हैं अपने वजूद से --
क्यों कोई आकर आज इस दिल को दिलासा दिलाता नहीं ?
कोई सागर इस दिल को बहलाता नहीं --  



  

 आंधियो में भी कभी चिरांग जलते हैं --सोचा नही था ?
सेहरा में भी कभी फूल खिलते हैं --सोचा न था ? 
जुगनू भी कभी दिन में चमकते हैं --सोचा न था ?
कांटो पर भी कभी गुलाब खिलते हैं --सोचा न था ?
भटकाव से भी कभी राहे मिलती हैं --सोचा न था ?
दरख्सतों पर भी कभी कमल खिलते हैं --सोचा न था ?
क्यों कोई आकर आज इन सवालों को सुलझाता नहीं ?
कोई सागर इस दिल को बहलाता नहीं -- 





Wednesday, March 14, 2012

* मेरी माँ *



*  मेरी माँ  *



मोम की तरह पिगलती रहती है 
शमां बन जलती रहती है 
हमरा हर काम अपनी शक्ति से परे करती है  
हमे परेशां देख ,खुद मन ही मन कुढती है 
हाँ ,यह मेरी माँ है !
हाँ, यह मेरी माँ है !
रब से भी ज्यादा मुझको इससे प्यार है |

कभी खुद को साबित नही किया उसने 
हमेशा हमे प्रोत्साहित किया उसने 
हमारी हर गलती को माफ़ किया उसने 
हममे हर शक्ति का संचार किया उसने 
हाँ ,यह मेरी माँ है !
हाँ ,यह मेरी माँ है !
रब से भी ज्यादा मुझको इससे प्यार है |

खुदा से ज्यादा हमने उसका मान किया 
खुद को खुद से ज्यादा कुर्बान किया 
हमेशा उसके आंचल में आराम किया 
माँ की क्या शे है इसका हमने ज्ञान किया  
हाँ ,यह मेरी माँ है !
हाँ यह मेरी माँ है !
रब से भी ज्यादा मुझको इससे प्यार है |

सपनो से परे एक जहां और भी है 
एक जमी एक आसमान और भी है 
इस पथरीली धरा पे हमे आगे बढना है 
होसले बुलंद हो ,सफलता कदम चूमे 
हर कठिनाई से आगाज़ किया इसने 
   हाँ ,यह  मेरी माँ है !
   हाँ यह मेरी माँ है   !
रब से भी ज्यादा मुझको इससे प्यार है |

दिनभर खटकती रहती है हमारी ख़ुशी के लिए 
रातो को चोंक उठती है .हमारी परेशानी के लिए 
खुद कांटो पर चलती है ,हमे फूलो पे चलाने के लिए 
खुदगर्ज़ कभी हो नही सकती अपने 'जायो' के लिए
हाँ ,यह मेरी माँ है !
हाँ ,यह मेरी माँ है !
रब से भी ज्यादा मुझको इससे प्यार है | 

"हाँ ,यह मेरी माँ है ?"  


!! माँ तुझे सलाम !!



Saturday, February 18, 2012

और मैं लौट गई ---..









मुझे अब उसकी जिन्दगी से लौट जाना चाहिए ----
क्योकिं अब हमारा समागम संभव नहीं----?
वो मुझे कदापि स्वीकार नहीं करेगा----
मैनें हर तरफ से अपनी 'हार' स्वीकार कर ली हैं----!
तो क्यों मैं मेनका बनकर,
विश्वामित्र की तपस्या भंग करूँ -----???


वो मुझे 'काम ' की देवी समझता हैं----
जिसे  एक दिन काम में ही भस्म हो जाना हैं ---
पर मैं रति -ओ - काम की देवी नहीं हूँ----
मैं प्रेम की मूरत हूँ ----?
मैं प्रेम की भाषा हूँ ----? 
मैं प्रेम की अगन हूँ ----?
मैं प्रेम की लगन हूँ ----?
मैं प्रेम की प्यास हूँ ----?
मैं प्रेम का उपहास हूँ ---?
मुझको काम की देवी कह मेरा माखौल न उडाओ ----!



मैं स्वप्न परी हूँ, नींदों में रमती हूँ -----
मैं प्रेम की जोगन  हूँ, प्रेम नाम जपती हूँ ---- 
मैं फूलों का पराग हूँ , शहद बन धुलती हूँ -----
मैं पैरो का घुंघरू हूँ , छम-- छम बजती हूँ ----
मैं  बाग़ की मेहँदी हूँ, तेरे ख्यालो में रचती हूँ ----
मुझेको  काम की देवी कह मेरा माखौल न उडाओ -----!



मैं बार -बार तेरे क़दमों से लिपटती हूँ परछाई बनकर ---
मैं बार -बार तेरी साँसों में समाती हूँ धडकन बनकर ----
मैं बार -बार लौट आती हूँ सागर की लहरें बनकर ----
मैं बार -बार गाई जाती हूँ भंवरों की गुंजन बनकर ----
मुझको काम की देवी कह मेरा माखौल न उडाओं ----!


मुझे रति -ओ - काम की देवी मत समझ ---
  मैं नीर हूँ तेरी आँखों का ..?
मैं नूर हूँ तेरे चहरे का --?
मैं हर्फ़ हूँ तेरे पन्ने का --?
         मैं सैलाब हूँ तेरी मुहब्बत का --?
        मैं मधुमास हूँ तेरे जीवन का --?
   मैं हर राज हूँ तेरे सिने का --?
   मैं साज़ हूँ तेरी सरगम का --?
मैं प्यास हूँ तेरे लबो का --?
मुझे रति -ओ -काम की देवी न समझ ???
मैं प्यार हूँ, मैं विश्वास हूँ ,मैं चाहत हूँ ????? 





काँटा समझ कर मुझ से न दामन को बचा 
उजड़े हुए चमन की एक यादगार हूँ मैं ....


Sunday, January 22, 2012

मुझे मेरा प्यार लौटा दो *****


यह कविता 'साहित्य प्रेमी संध' के काव्य संग्रह में छपी हुई हैं 

"टूटते सितारों की उड़ान "



मेरी कुछ यादे तुम्हारे पास पड़ी हैं *****
मेरा प्यार !वो चाहत ! तुम्हारे पास पड़ी हैं *****
मुझे वो यादें लौटा दो *****
मुझे मेरा प्यार लौटा दो *****








किताबो में रखा वो मुरझाया फूल ****
खुश्बुओ से सराबोर वो मेरे ख़त ****
मेरी वो पायल ****
मेरा वो रुमाल ****
मेरा वो दुप्पटा ****
मुझे मेरा वो सामान लौटा दो ****
मुझे मेरा प्यार लौटा दो ****





कुछ दिल के अरमान लिपटे हैं**** 
चंद बंडलो में **** 
कुछ जर्द पत्ते सिमटे हैं ****
हथेलीओ में****
चंद यादों के पल रेत के महल से ****
ढह गए हैं ****
मुझे वो एहसास लौटा दो ****
मुझे मेरा प्यार लौटा दो ****  




चंद दूर हम साथ चले थे ****
हाथो में हाथ लिए ****
मेरे उड़ते हुए गेंसू ****
तेरा कनखियों से मुझे तकना ****
मेरा खिलखिलाना ****
तेरा शरम से झुक जाना ****
मेरा ठहाका लगाना ****
मुझे वो नैनो की चिलमन लौटा दो ****
मुझे मेरा प्यार लौटा दो ****




सावन की वो पहली फुहारें****
जब हमतुम इक छज्जे में सिमटे थे ****
कुछ भीगे तुम थे ****
कुछ गीले हम थे ****
मेरी जुल्फों से रिसती वो बुँदे ****
तेरी प्यास बुझती वो नजरे ****
मेरे कंधे को छूते तेरे हाथ **** 
मेरे कंपकंपाते वो होंठ ****  
मेरी अश्को से भीगी वो कोरे ****
क्या लौटा सकते हो वो भींगी रातें****
मुझे वो भींगा सावन लौटा दो ****
मुझे मेरा प्यार लौटा दो****




कभी पेड के नीचे था ****
चमेली के फूलों का बिछौना ****
खुशबुओ से भरा माहौल ****
तेरी गोद में सिर था मेरा ****
मेरी जुल्फों को सहलाती तेरी उंगलियाँ ****
जिनमें बसी थी मेहँदी की खुशबु****
उस दिलकश रात में ****
चाँद कही गुंम था****
 सितारों से भरे आकाश में ****
हम इक दूजे की बांहों में समाए ****
भोर का इंतजार कर रहे थे ****
 मुझे वो सर्द रात लौटा दो ****
मुझे मेरा प्यार लौटा दो *********!



   मुझे मेरा प्यार लौटा दो  

*******************   




Thursday, January 12, 2012

दिलकश चाँद !


दिलकश  चाँद !


यह कविता 'साहित्य प्रेमी संध' के काव्य संग्रह में छपी हुई हैं 








 " चलो दिलदार चलो 
  चाँद के पार चलो "

तुम्हारी चमकती आँखों में छांककर पूछती--
और तुम अपनी मदमस्त आँखों को घुमाकर कहते --

" हम हैं  तैयार चलो "--

और मैं  ख़ुशी के हिंडोले में सवार 
दू.....र... आकाश में अपने पंख पसार 
बादलो से परे,
चाँद की पथरीली जमीं पर,
उड़ते -उड़ते घायल हो चुकी हूँ ,
अपने लहू -लुहान जिस्म को समेटे ,
कातर निगाहों से तुम्हे धूर रही हूँ  ,
और तुम दू....र खड़े मुसकुराते हुए,
मानो,मेरा मजाक उड़ा रहे हो---

"  चाँद को छूने वाले ओंधे मुंह जो गिरते है "








मैं  सोच रही हूँ  की यह चाँद दूर से कितना ,
हसीन !कितना दिलकश था !
क्यों मैने इसके नजदीक जाने का साहस किया !                      





तुम भी तो ' राज' ! 
उस चाँद की तरह हो ,
जिसे मैं  देख तो सकती हूँ  ,
पर छू नही सकती ----?





अपने तन -मन को घायल कर --
आज सवालों के घेरे में खड़ी हूँ  --!

दू......र से आवाज आ रही हैं  -- 

" आओ खो जाए सितारों में कहीं 
छोड़ दे आज ये दुनिया ये जमीं  " 

चलो दिलदार चलो 
चाँद के पार चलो 
हम हैं तैयार चलो ~~~~~~~!