वो समुंदर का मोती था ...सिप उसका घर था ..
बाहरी दुनियाँ से वो अनजान था .....
अपने दोस्तों से उसको बहुत प्यार था ...
कुर्बान था वो अपनी दोस्ती पर ,
मस्त मौला बना वो गुनगुनाता रहता था ...
दोस्तों के छिपे खंजर से वो अनजान था ..
एक दिन उसने दोस्तों का असली रूप देखा ..
दिल टूट गया उसका ..
एक भूचाल -सा आ गया उसके जीवन में ..
वो अंदर तक तिडक गया ...
फिर भी वो शांत रहा ...
शांति से निकल गया दूर बहुत दूर ...
इस स्वार्थी दुनिया से परे ...
अपनी छोटी -सी दुनियां में ...
जहाँ वो आज खुश है ...पर -----
"दिल पर लगी चोट कभी -कभी हरी हो जाती है ..
खून बहने लगता है ...कराहटे निकलने लगती है ..."
12 comments:
बहुत बढिया ।
दिल को छू गयी रचना....
सच है मन की चोट कभी सूखती नहीं....
सादर
अनु
सच को कहती सुन्दर अभिव्यक्ति।
सुन्दर अभिव्यक्ति...
♥ लोहड़ी की बहुत बहुत बधाई और हार्दिक मंगलकामनाएं ! ♥
साथ ही
मकर संक्रांति की शुभकामनाएं !
राजेन्द्र स्वर्णकार
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सच को बयाँ करती रचना |
नया आयाम देती आपकी ये बहुत उम्दा रचना ..भाव पूर्ण रचना .. बहुत खूब अच्छी रचना इस के लिए आपको बहुत - बहुत बधाई
मेरी नई रचना
मेरे अपने
खुशबू
प्रेमविरह
उम्दा प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
भावपूर्ण अभिव्यक्ति, शुभकामनाएँ.
दर्द की बेहतर अभिव्यक्ति ..
1 Sal ho gaya, blog par karahaten nikalni band ho gayi :)
jab se bimar hui hu thodi der hi p c par bhith pati hu ...isliye post nahi kar pati ...
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